Tajmahal : जब बांस और काले कपड़ों से बचाया गया ताज

https://uplive24.com/how-india-hid-taj-mahal-and-red-fort-during-war/

आज हम ताजमहल (Tajmahal) को उसकी सफेद संगमरमर की चमक में देखते हैं, लेकिन 1971 के दिसंबर महीने में उसकी वह चमक छिपा दी गई थी - जानबूझकर। कहानी पांच सदी पहले हुई ड्रिल (Mock Drill) की। 

आज जब हम ताजमहल (Tajmahal) की बात करते हैं, तो आंखों के सामने बस वह चमचमाता सफेद संगमरमर, प्यार की निशानी और दुनिया का सातवां अजूबा ही आता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस बेमिसाल इमारत को बचाने के लिए कभी बांस की टहनियों और काले कपड़े का सहारा लिया गया था? 

यह वो किस्सा है, जब ताजमहल को दुश्मनों की नजरों से छुपाने के लिए अनोखा जुगाड़ लगाया गया। पहलगाम में हुए आतंकी हमले (Pahalgam terror attack) के बाद पाकिस्तान के साथ संबंधों में तनाव है। 7 मई को पूरे भारत में होने वाली मॉक ड्रिल (Mock Drill) के बहाने हम आपको उस दौर में ले चलते हैं, जब 1942, 1965 और 1971 में ताजमहल को बचाने के लिए ऐसा ही कुछ कमाल हुआ था।

द्वितीय विश्व युद्ध का दौर था। जर्मन लूफ्टवाफे और जापानी बमवर्षक विमानों का खौफ हर तरफ था। ब्रिटिश सरकार को डर था कि ताजमहल (Tajmahal), जो अपनी चमक की वजह से आसमान से साफ दिखता था, दुश्मनों का आसान निशाना बन सकता है। अब उस जमाने में न GPS था, न सैटेलाइट इमेजिंग। तो क्या किया जाए? 

ब्रिटिश इंजीनियर्स ने गजब का दिमाग लगाया। उन्होंने ताजमहल के गुंबद के ऊपर बांस की मचान (स्कैफोल्डिंग) लगा दी। ऊपर से देखने पर बांस का ढेर ऐसा लगता था, जैसे कोई कंस्ट्रक्शन साइट हो। 

कहा जाता है कि पूरी इमारत को ढक दिया गया था, हालांकि इसकी कोई पक्की तस्वीर नहीं मिलती। लेकिन एक पुरानी फोटो में अमेरिकी सैनिक प्राइवेट फर्स्ट क्लास जॉन सी. बायरन जूनियर को ताजमहल (Tajmahal) के बाहर तालाब में मछली पकड़ते देखा गया, जबकि कॉर्पोरल एंथनी जे. स्कोपेलिटी और प्राइवेट फर्स्ट क्लास रे चेरी उनकी हरकतें देख रहे थे। 

कहा जाता है कि बायरन और स्कोपेलिटी ने बांस की मचान ठीक करते वक्त ताज के गुंबद पर अपने नाम के शुरुआती अक्षर भी उकेर दिए थे। यह निशानी आज भी इतिहास का हिस्सा है।

काले कपड़े का कमाल

ताजमहल (Tajmahal) का यह छलावा सिर्फ 1942 तक सीमित नहीं रहा। 1965 और 1971 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ, तब भी ताजमहल को बचाने के लिए ऐसा ही कुछ किया गया। खासकर 1971 में, जब युद्ध अपने चरम पर था, ताजमहल को काले कपड़े से ढक दिया गया। 

इसी तरह से लाल किले को भी 'गायब' किया गया था

1971 के युद्ध के दौरान, भारत को आशंका थी कि पाकिस्तान (Pakistan) की वायुसेना दिल्ली पर हमला कर सकती है। तब ताजमहल (Tajmahal) की तरह ही लाल किला को भी छिपाने की योजना बनाई गई। 

लाल किले (Red Fort) को बांस की मचान और जूट के कपड़े से ढंका गया, ताकि यह ऊपर से देखने पर एक सामान्य संरचना लगे। दुश्मन को भ्रमित करने के लिए आसपास डमी संरचनाएं बनाई गईं, ताकि असली किले की पहचान न हो सके। दिल्ली में रात के समय ब्लैकआउट किया गया और हवाई हमले के सायरन बजाए गए।

आज जब 7 मई को पूरे देश में मॉक ड्रिल (Mock Drill) होगी, तो हमारे पास GPS, satellite imagery और cyber alert systems जैसी टेक्नोलॉजी है।

1971 में, बांस, काला कपड़ा और लोगों का साहस ही हमारी ढाल थे। ताजमहल (Tajmahal) आज भी सलामत है, शायद इसी तरह की बेसिक लेकिन जरूरी तैयारियों की वजह से।

Comments

Popular posts from this blog

Act of War : जब ये शब्द बन जाते हैं युद्ध का ऐलान

Constitution : पाकिस्तान का संविधान बनाने वाला बाद में कैसे पछताया

Pahalgam attack : भारत की स्ट्राइक से डरे पाकिस्तान ने दी सफाई